राष्ट्रीय पोषण सप्ताह: 1-7 सितंबर

राष्ट्रीय पोषण सप्ताह: 1-7 सितंबर

राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (एनएनडब्ल्यू), भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया वार्षिक पोषण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम पूरे देश में प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहत्तर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास, उत्पादकता, आर्थिक विकास और अंततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है।

विषय:

‘उत्कृष्ट शिशु एवं बाल आहार पद्यति: बेहत्तर बाल स्वास्थ्य’ राष्ट्रीय पोषण सप्ताह वर्ष 2017 का विषय है। शैशवावस्था एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान उचित पोषण बच्चों को जीवन में बढ़ने, विकास करने, सीखने, खेलने, भाग लेने और समाज में योगदान करने योग्य बनाता है, जबकि कुपोषण संज्ञानात्मक क्षमता, शारीरिक विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली को ख़राब करता है तथा बाद के जीवन में रोग (जैसे कि मधुमेह एवं हृदय रोग) उत्पन्न होने के ज़ोखिम को बढ़ाता है।

प्रमुख तथ्य:

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का आहार एवं पोषण परिषद 30 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों स्थित अपने 43 सामुदायिक आहार और पोषण इकाईयों के माध्यम से राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के विभागों, राष्ट्रीय संस्थानों, स्वयं सेवी संगठनों से समन्वय स्थापित करेगा तथा किसी प्रमुख विषय पर कार्यशाला, प्रशिक्षण कार्यक्रम, तथा सामुदायिक बैठकों का आयोजन करेगा।

राज्य, जिला तथा गाँव स्तर पर अऩेक कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें और इसमें सस्ते पोषक भोजन की विधि भी बताई जाएगी। स्कूल शिक्षकों, आगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, ग्रामीण महिलाओं तथा महिला समितियों के समक्ष प्रदर्शनी के माध्यम से विभिन्न आयु वर्गों के लिए सस्ते पोषक भोजन की विधि बताई जाएगी। गाँव स्तर पर कठपुतली, नृत्य, नाटक तथा फिल्मों के माध्यम से पोषण के प्रति जागरुकता बढ़ाई जाएगी।

वर्तमान और आगे आने वाली पीढ़ी के जीवित रहने, स्वास्थ्य तथा विकास के लिए पोषण एक आवश्यक मुद्दा है। ऐसे नवजात जिनके जन्म के समय वजन निर्धारित सीमा से कम होता है उन्हें बीमारियों की आशंका ज्यादा रहती है। कुपोषित बच्चों की बुद्धि मत्ता भी कम होती है। सभी आयु वर्गों के लोगों का पोषण तथा स्वास्थ्य राष्ट्रीय आर्थिक संपदा होती है।

राष्ट्रीय विकास के लिए आबादी के पोषण स्तर में सुधार आवश्यक है। एनएफएचएस4 द्वारा भी विशेषकर महिलाओं और बच्चों के पोषण स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज नही की जा सकी है। कम वजन वाले लोगों की संख्या में 6.8 प्रतिशत की कमी आई है। रक्त की कमी वाले लोगों की संख्या में भी 11 प्रतिशत की कमी आई है। कुपोषण को केवल गरीबी के संदर्भ में नही देखा जाना चाहिए। यह एक राष्ट्रीय समस्या है और उत्पादकता व आर्थिक विकास पर इसका कुप्रभाव पड़ता है।

एएमएस पर विश्व व्यापार संगठन में भारत और चीन द्वारा संयुक्त प्रस्ताव:

भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद सुलझने के बाद सरकार ने अमीर देशों द्वारा अपने किसानों को दी जा रही सब्सिडी के विरोध में चीन के साथ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को भेजे गए भारत-चीन संयुक्त प्रस्ताव का समर्थन दोहराया है। दोनों देशों ने संयुक्त रूप से जुलाई में डब्ल्यूटीओ को प्रस्ताव सौंपा था, जिसमें विकसित देशों द्वारा दी जाने वाली कृषि सब्सिडी को व्यापार बिगाडऩे वाली सबसे सबसे खराब व्यवस्था बताते हुए वापस लिए जाने की मांग की गई है।

31 अगस्त 2017 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कहा कि इस तरह की सहायता खत्म की जानी चाहिए, जो घरेलू समर्थन को लेकर चल रही चर्चा की पूर्वशर्त है। दोनों देशों का संयुक्त प्रस्ताव इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि दिसंबर में ब्यूनस आयर्स में 11वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन होने जा रहा है। संयुक्त प्रस्ताव अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्राजील के नेतृत्व में अमीर देशों द्वारा विकासशील देशों की सब्सिडी को निशाना बनाए जाने विरोध में आया है। विकसित देश अपनी अर्थव्यवस्था के तहत भारी मात्रा में कृषि सब्सिडी बहाल रखे हुए हैं।

प्रस्ताव के विरोध में ब्राजील और यूरोपीय संघ पहले ही साथ आ गए हैं और डब्ल्यूटीओ में आक्रामक रूप से विरोध कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, 'भारत व चीन ने संयुक्त रूप से एक प्रस्ताव डब्ल्यूटीओ को सौंपा है जिसमें विकसित देशों द्वारा दी जा रही कृषि सब्सिडी को समाप्त करने का आह्वान किया गया है।' बयान के अनुसार प्रस्ताव में इस सब्सिडी को 'कृषि सब्सिडी का सबसे अधिक व्यापार बिगाड़ू रूप' बताया गया है। डब्ल्यूटीओ की भाषा में इस प्रकार की सब्सिडी को 'एग्रीगेट मेजरमेंट आफ सपोर्ट (एएमएस)' या 'एंबर बाक्स' सब्सिडी कहा जाता है।

संयुक्त पत्र में कहा गया है कि अमेरिका, यूरोपीय संघ तथा कनाडा सहित विकसित देश अपने किसानों को लगातार भारी भरकम सब्सिडी दे रहे हैं। यह सब्सिडी विकासशील देशों के लिए तय सीमा से कहीं अधिक है।

पृष्ठभूमि:

विकसित देशोंं द्वारा 1995 से ही दी जा रही भारी भरकम सब्सिडी वाले उत्पादों का उल्लेख करते हुए इस पत्र में कहा गया है कि इनमें से तमाम उत्पादों पर 50 प्रतिशत से ऊपर और यहां तक कि कुछ उत्पादों पर 100 प्रतिशत से ऊपर सब्सिडी दी जाती है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, 'संयुक्त पत्र में अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा सहित विकसित देशों का हवाला दिया गया है, जो अपने किसानों को कारोबार बिगाडऩे वाली सब्सिडी लगातार मुहैया करा रहे हैं, जो विकासशील देशों के लिए तय की गई सीमा की तुलना में बहुत ज्यादा है।'

इसके अनुसार विकसित देशों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी लगभग 160 अरब डॉलर की है। वहीं दूसरी ओर भारत जैसे देशों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी लगभग 260 डॉलर प्रति किसान सालाना है। इस तरह  कुछ विकसित देश किसानों को विकासशील देशों की तुलना में 100 गुना से ज्यादा सब्सिडी मुहैया करा रहे हैं। इस मसले पर भारत ने कहा कि कृषि सब्सिडी तय सीमा से अधिक नहीं दी जानी चाहिए।